Kripa's blog
Kripa's poems and views
Wednesday, 13 November 2013
एक और
गुल - ए - गुलज़ार हो तुम,
या हुस्न का त्यौहार हो ;
तेरा इन्कार हो या इकरार हो,
मेरे दिल में तेरा प्यार हो,
बेशुमार हो ।
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